कैसी है ये जिंदगी ज़रा आके समझाओ
हम भी इंसानों की तरह आज़ाद रहना चाहते हैं
ऐ इंसानों ज़रा हमसे भी इंसानियत निभाओ
तुम्हारे पिंजरे मे कैद होते हुए मेरा हाथ टूट गया
हाथ ऐसा टूटा के मेरे अपनो का साथ छूट गया
मैंने नन्हे आज़ाद परिंदे ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है
जो तुमने मेरा घर संसार उजाड़ा है
यहां एक की खुशी के लिए किसी लाचार की कुर्बानी
जैसी है
मेरे हिसाब से ये जिंदगी ऐसी है
ना जाने ये जिंदगी कैसी है
My Thought's
BY
UPKAR SARAON
Comments
Post a Comment